Monday, 12 November 2012




एक बार काम के सिलसिले में मुझे दिल्ली में दो महीने रुकना था। मैं अपने एक दोस्त के रिश्तेदार मिस्टर यादवेन्द्र सिंह के यहाँ पेईंग-गेस्ट बन कर रहा। मिस्टर सिंह 52 साल के थे, उनकी पत्नी सुचित्रा सिंह 46 साल की थी। उनके दो बच्चे थे, एक लड़का विजय सिंह जो पढ़ाई के लिए लिए यू एस ए गया था और एक लड़की मिस रूपाली सिंह जो चंडीगढ़ के कॉलेज में हॉस्टल में रह कर पढ़ती थी, रूपाली छुट्टियों में ही घर पर आती थी।



जब मैं वहाँ पहुँचा तो सिर्फ़ अंकल और आँटी ही थे। मुझे एक कमरा दे दिया था, पहले मैं बहुत शरमाता था फिर धीरे-धीरे मैं उन लोगो में घुलमिल गया।

आँटी बहुत ही अच्छा खाना पकाती थी बिल्कुल घर के जैसा और अंकल का स्वभाव भी काफ़ी अच्छा था।

मैं रोज़ सुबह 10 बजे ऑफ़िस चला जाता था और शाम को 7 बजे घर आता था। फिर सब लोग साथ में खाना खाते थे। फिर मैं सोने चले जाता था। रोज़ मेरी यही दिनचर्या रहती थी।

मुझे एक ही बात कभी कभी ख़टकती थी, आँटी मुझे कभी-कभी ऐसी नज़रों से देखती थी कि मेरे तन-बदन में आग लग जाती थी। वैसे उसको देख कर कोई नहीं कह सकता था कि वो 46 साल की हैं और वो भी दो बच्चों की माँ ! थी तो वो थोड़ी मोटी लेकिन फिर भी एकदम बढ़िया फिगर थी उनकी।

मुझे पहले तो बड़ी शरम आती थी ! वो जैसे मेरे तरफ देखना चालू करती, मैं अपना मुँह नीचे कर लेता क्योंकि वो आयु में काफ़ी बड़ी थी, कभी कभी तो वो अंकल के सामने ही मुझे देखती रहती।

उनकी ऐसी हरकतों से मैं डर जाता था।

वैसे वो बात बड़ी प्यारी-प्यारी करती थी, दोनों बड़े प्यार से मुझे रखते थे, मुझे वहाँ कोई पाबंदी नहीं थी, कभी भी कहीं भी गह्र में घूमो, बाहर घूमो, कुछ भी खाओ ! कोई रोक-टोक नहीं थी।

एक शाम मैं ऑफ़िस से घर आया तो आंटी ने दरवाज़ा खोला। मैं फ्रेश होकर सोफे पर बैठ गया। अंकल घर पर नहीं थे।

मैंने आंटी से पूछा- अंकल कहाँ गये हैं?

तो वो मुस्कुरा कर बोली- आज वो अपने फ्रेंड के बेटे को देखने अस्पताल गये हैं और रात भर वहीं रुकने वाले हैं।

और मुझे कहा कि मैं वहाँ अंकल को खाना देकर आऊँ।

मैं जल्दी से अस्पताल पहुँचा, वहाँ काफ़ी भीड़ थी। अंकल को खाना दिया। फिर थोड़ी देर वहाँ रुका और खाली टीफ़ेन लेकर घर पहुँचा।

बड़ी तेज़ भूख लग रही थी। घर जाकर मैंने और आंटी ने खाना खाया, फिर मैं टीवी देखने लगा और आंटी अपना काम करने लगी।

वो काम करते करते बार बार मेरी तरफ प्यासी निगाहों से देखा रही थी।

मैं एकदम डर सा गया !

अचानक वो मेरे पास आकर टीवी देखने बैठ गई।

मैं कुछ नही बोला। उन्होंने सलवार-सूट पहना था पर दुपट्टा नहीं लिया था।

थोड़ी देर के बाद वो बोली- बेटा दूध पियोगे?

मैंने कहा- हाँ आंटी !

तो वो हंस कर रसोई में चली गई।

मुझसे रहा नहीं गया, मैं भी पीछे-पीछे रसोई में चला गया। वो मेरे लिए दूध गर्म कर रही थी।

मुझे रसोई में देख कर वो मुस्कुराने लगी और अपनी ज़बान होंठों पर घुमाने लगी।

मैं भी हिम्मत करके उनके पास गया और धीरे से अपने दोनों हाथ उनके कंधों पर रख दिए और ज़ोर से अपनी ओर खींचा।

वो शरमा कर बोली- बेटा, क्या कर रहे हो ?

मैंने कहा- कुछ नहीं कर रहा हूँ।

आंटी ने धक्का देकर मुझे अपने से अलग किया और बोली- बेटा, शरम करो ! मैं तुम्हारी माँ की उम्र की हूँ।

मैंने भी कहा- तो मेरी तरफ यूँ रोज़ देखते हुए आप को शर्म नहीं आती ?

तो वो कुछ नही बोली।

फिर मैं उनके पास गया और पकड़ कर चूमने लगा।

वो धीरे-धीरे मेरी बाहों में पिघलने लगी।

फिर मैंने उनके कपड़े निकालने शुरू किए। पहले वो ना-ना बोलती गई, फिर वो अपने आप ही कपड़े उतारने लगी..

मैंने कहा- चुदवाना है तो ना ना क्यूँ करती हो ?

वो बोली- आज से पहले मैंने तुम्हारे अंकल के सिवाय किसी और से नहीं किया।

मैंने कहा- एक बार मेरा लंड ले लोगी तो किसी और का नहीं मांगोगी।

यह सुन कर उन्होंने अपने हाथों से मेरी पैंट उतारना शुरू किया। जैसे ही मेरा लंबा सा लंड देखा, वो पागल हो गई, दोनों हाथों से लंड को हाथ में लेकर चूमने लगी, बोली- बरसों से ऐसे लंड का मुझे इंतज़ार था।

और फिर से हुँह में लेकर पागलों की तरह चूसने लगी।

मुझे भी मज़ा आ गया।

और वो चूसती ही रही।

फिर मैंने उन्हें पकड़ कर सोफे पर लेटाया और अपनी उंगली उनकी चूत में डाल कर हिलाने लगा।

वो तो मानो पागलों की तरह हवा में उछल-कूद करने लगी। वो बार बार अपने कूल्हे ऊपर उठाती थी, उन्हें बड़ा मज़ा आ रहा था।

अब उन्होंने ज़ोर से चिल्ला कर कहा- अभी डाल दे मेरी चूत में अपना लंड और फाड़ डाल आज इसे..

यह सुन कर मैं भी पागल हो गया और अपना लंड उनकी चूत पर रख दिया और हिलना चालू किया।

वो तो मानो स्वर्ग के मज़े ले रही थी, अपनी गाण्ड उछाल-उछाल के मेरा लंड डलवा रही थी और बोल भी रही थी- चोदो ! ज़ोर ज़ोर से चोदो.. फाड़ डालो मेरी चूत को ! बहुत मज़ा आ रहा है ! आज जी भर के चोदो मुझे, सारी रात चोदो..

मैं ज़ोर-ज़ोर से झटके मारते गया, कुछ देर बाद वो शांत पड़ गई तो मैंने कहा- क्या हुआ?

तो वो बोली- बस थक गई !

तो मैंने कहा- इतने में ही थक गई?

तो वो बोली- बेटा उम्र भी हो चुकी है !

तो मैंने कहा- थोड़ी देर पहले तो सारी रात चुदवाने की बात कर रही थी?

तो बोली- वो तो मैं जोश में थी।

मैंने कहा- मैं तो अभी भी जोश में हूँ, चल आज तेरी गाण्ड भी मार लूं ! बड़ी अच्छी है तेरी गाण्ड !

तो वो बोली- नहीं बेटे, बहुत दर्द होगा !

तो मैंने कहा- एक बार मरवाएगी तो बड़ा मज़ा आएगा।

और मैंने उसे ज़ोर से पकड़ कर उल्टा लेटा दिया और उसकी गाण्ड मारने लगा।

पहले वो चिल्लाई, फिर उन्हें भी मज़ा आने लगा.. वो अभी अपनी गाण्ड ऊपर कर-कर के मरवा रही थी।

मैंने कहा- देखा, कितना मज़ा आ रहा है !

तो बोली- हाँ बेटे.. तेरे अंकल ने आज तक मेरी गाण्ड नहीं मारी !

थोड़ी देर बाद मेरा पानी उनकी गाण्ड में मैं निकल गया।

उस रात हम ऐसे ही नंगे एक दूसरे से चिपक के सो गये। सुबह जब जागे तब भी साथ-साथ नहाए। मैंने बाथरूम में भी एक बार उन्हें चोदा। वो तृप्त हो गई थी।

उन दो महीनों में मैंने उन्हें बहुत बार चोदा।

जब जब अंकल मार्केट जाते या बाहर जाते तो वो नंगी होकर मेरे पास आ जाती।

मैं बोलता- इतनी बड़ी होकर घर में नंगी घूमती हो?

तो कहती- बड़े बच्चे नंगे ही घूमते हैं। चल तू भी उतार दे अपने कपड़े !


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